ढूंढता हूं मैं, ढूंढता हूं
ढूंढता हूं मैं, ढूंढता हूं,
हैरान हूं मैं,
आधी रात को,
खुद को ढूंढते हुए
उस अंबर में,
मंज़िल से मंज़िल तक,
खोए हुए प्यार को।
लाखों सितारें
चमक रहे हैं आसमान में,
लगता है जैसे
खोए हैं खयालों में,
गले लगाकर अपने आशिक को।
देखो, झुक गया आसमान भी जमीं पर,
चुपके से कुछ कहता है उससे,
और सितारे ख़ामोशी से देख रहे हैं मुझको,
कैसे चुन रहा हूं मैं
मेरे खोए हुए प्यारे मंजिलों को,
जो मेरे रिश्ते थे, पिछले कई जन्मों के।
आहिस्ता आहिस्ता महसूस
हो रहा मुझको,
बीती हुई हकीकत क्या थी,
लेकिन बहुत हैरान हूं मैं,
सभी को सच का यकीन दिलाने को।
पुकार पुकार के पुछ रहा हूं मैं,
तुमने क्या पहचाना मुझको?
जिसने जन्म लिया,
बदलते हुए रिश्ते लेकर, कई कई बार,
में वही हूं, वही हूं।
ढूंढता हूं मैं, ढूंढता हूं,
हैरान हूं मैं,
आधी रात को,
खुद को ढूंढते हुए
उस अंबर में,
मंज़िल से मंज़िल तक,
खोए हुए प्यार को,
ढूंढता हूं मैं, ढूंढता हूं।।
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